बेतला राष्ट्रीय उद्यान झारखण्ड के लातेहार जिला में है । प्रकृति ने झारखंड की खूबसूरती को बड़े ही फुर्सत से तराशा है। यहां की आबोहवा में जब प्राकृतिक संगीत गूंजती है। पर्यटन के नजरिए से यहां वो सब कुछ है जो सैलानियों को आनंद दे सके।
रांची से लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पलामू प्रमंडल का टाइगर रिजर्व ऐसा ही एक पर्यटन स्थल है। जहां बाघ और हाथी के साथ दूसरे अन्य जानवरों का स्वच्छंद विचरण के साथ मन को मोहने वाले रंग बिरंगे पंछी बार-बार आपको यहां आने के लिए विवश कर देंगे।
जंगली जानवरों के प्राकृतिक अंदाज और पक्षियों के सुरीले कलरव से ही पलामू टाइगर रिज़र्व देश के बाकी टाइगर रिजर्व से अलग और खूबसूरत नजर आता है।
जून 1974 को बाघों की घटती संख्या पर चिंता जताते हुए देश में 9 टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई जिनमें पलामू टाइगर रिजर्व भी एक है।
567 वर्ग किलोमीटर में फैला टाइगर रिज़र्व का एक बड़ा हिस्सा लातेहार और गढ़वा जिला के अंतर्गत बेतला, पूर्वी छिपादोहर, पश्चिमी छिपादोहर और कुटकु प्रक्षेत्र में अवस्थित है। बेतला रिजर्व केतकी से शुरु होकर नेतरहाट तक जाती है।
डाल्टेनगंज से बेतला की दुरी 25 किलोमीटर, लातेहार से 70 किलोमीटर और रांची से 170 किलोमीटर है। रांची से रेल और सड़क मार्ग से बेतला पहुंचना काफी सुविधाजनक है ।
पलामू टाइगर रिजर्व के मुख्यालय पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रांची है जो डाल्टेनगंज से लगभग 180 किलोमीटर है बेतला से 195 किलोमीटर है ।
गर्मी के कुछ महीनों को छोड़कर बाकी महीने पर्यटक बड़े शौक से यहाँ आ सकते हैं । गर्मी की चिलचिलाती धूप ना केवल लोगों को ही नागवार गुजरती है। बल्कि वन्य प्राणियों के लिए बड़ी दुश्वारियां खड़ी करती हैं। इस दौरान पार्क के छोटे बड़े ताल तलैये सूख जाते हैं। ऐसी स्थिति में जानवरों को पीने का पानी वन विभाग के द्वारा बने वाटर टर्फ में ही मिलता है। जिस में प्रतिदिन टैंकर से पानी भर दिया जाता है। जहां जंगली जानवर आकर अपनी प्यास बुझाते हैं।
पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों की उपलब्धता और उनकी संरक्षण को प्राथमिकता की सूची में रखा गया है। जंगली जानवरों पर सीधी नजर रखने के लिए ट्रेकिंग कैमरे की मदद ली जाती है। थोड़े थोड़े दिनों के अंतराल में ट्रेकिंग कैमरे की मदद से बाघों की गतिविधियां और उनकी मौजूदगी के प्रमाण मिलते रहते हैं।
इसके साथ ही साथ पुराने तरीके जैसे पग विधि और अन्य तरीकों से भी बाघों पर नजर रखी जा सकती है। बेतला राष्ट्रीय उद्यान बाघों और अन्य वन्य प्राणियों के स्वतंत्र विचरण के लिए आरक्षित हैं।
2014 में वन विभाग के द्वारा एक शिशु हथिनी राखी को गोद लिया गया था। इसकी मां का निधन हो वज्रपात से गया था। फिलहाल वन विभाग इसकी देखरेख कर रहा है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
पर्यटकों के लिए वॉच टावर और केचकी गेस्ट हाउस की व्यवस्था है। शाकाहारी वन्यजीवों के लिए लगभग 100 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में वैज्ञानिक तरीके से घास का मैदान बनाया गया है। ताकि सालों भर वन्यजीवों को समुचित आहार मिल सके। यहाँ तक जाने वाली रोड का निर्माण किया गया है ताकि लोगों को यहां आने में सुविधा हो सके।
बेतला में पर्यटकों की सुविधाओं के लिए अब पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। विभिन्न स्थानों पर टूरिस्ट लॉज, वन विश्रामगार, पर्यटक वाहन, टूरिस्ट गाइड, कैंटीन और अल्पाहार जैसी सुविधाओं का संचालन विकास कोर समिति के द्वारा किया जाता है।
यहां नेशनल पार्क के अलावा पलामू किला, केचकी संगम, गरम पानी का झरना, बरवाडी पहाड़ी, मंगल डैम, कुल्लू दोमुहान व्याख्याता केंद्र, नेशनल इनफार्मेशन सेंटर और म्यूजियम जैसी जगह सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
प्रतिवर्ष कोर एरिया प्रमंडल के तहत ग्रामीणों और स्कूली बच्चों को जोड़ते हुए उनकी बीच में वन्य प्राणी सप्ताह, वन महोत्सव, विश्व पर्यावरण दिवस, विश्व वानिकी दिवस और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से यहां जगह-जगह सूचना पट्ट लगाए गए हैं।
लातेहार जिला में स्थित बेतला राष्ट्रीय उद्यान एक खुबसूरत पर्यटक स्थल है। पलामू वन्यजीव अभयारण्य 980 वर्ग किमी के क्षेत्र में बनाया गया था। जिसे बाद में पलामू अभ्यारण्य के 227 वर्ग किमी के एक क्षेत्र के साथ 1989 में इसे बेतला राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था। इस वन्यजीव अभ्यारण्य में विविध पारिस्थितिकी प्रणाली और विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर पाये जाते है। राष्ट्रीय उद्यान एक ऐसा क्षेत्र है जो सख्ती से वन्यजीव और जैव विविधता की बेहतरी के लिए आरक्षित है और जहां विकास, वानिकी, अवैध शिकार, शिकार और खेतों पर चराई जैसी गतिविधियों की अनुमति नहीं है। इसकी सीमाएं अच्छी
रांची से लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पलामू प्रमंडल का टाइगर रिजर्व ऐसा ही एक पर्यटन स्थल है। जहां बाघ और हाथी के साथ दूसरे अन्य जानवरों का स्वच्छंद विचरण के साथ मन को मोहने वाले रंग बिरंगे पंछी बार-बार आपको यहां आने के लिए विवश कर देंगे।
जंगली जानवरों के प्राकृतिक अंदाज और पक्षियों के सुरीले कलरव से ही पलामू टाइगर रिज़र्व देश के बाकी टाइगर रिजर्व से अलग और खूबसूरत नजर आता है।
जून 1974 को बाघों की घटती संख्या पर चिंता जताते हुए देश में 9 टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई जिनमें पलामू टाइगर रिजर्व भी एक है।
567 वर्ग किलोमीटर में फैला टाइगर रिज़र्व का एक बड़ा हिस्सा लातेहार और गढ़वा जिला के अंतर्गत बेतला, पूर्वी छिपादोहर, पश्चिमी छिपादोहर और कुटकु प्रक्षेत्र में अवस्थित है। बेतला रिजर्व केतकी से शुरु होकर नेतरहाट तक जाती है।
डाल्टेनगंज से बेतला की दुरी 25 किलोमीटर, लातेहार से 70 किलोमीटर और रांची से 170 किलोमीटर है। रांची से रेल और सड़क मार्ग से बेतला पहुंचना काफी सुविधाजनक है ।
पलामू टाइगर रिजर्व के मुख्यालय पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रांची है जो डाल्टेनगंज से लगभग 180 किलोमीटर है बेतला से 195 किलोमीटर है ।
गर्मी के कुछ महीनों को छोड़कर बाकी महीने पर्यटक बड़े शौक से यहाँ आ सकते हैं । गर्मी की चिलचिलाती धूप ना केवल लोगों को ही नागवार गुजरती है। बल्कि वन्य प्राणियों के लिए बड़ी दुश्वारियां खड़ी करती हैं। इस दौरान पार्क के छोटे बड़े ताल तलैये सूख जाते हैं। ऐसी स्थिति में जानवरों को पीने का पानी वन विभाग के द्वारा बने वाटर टर्फ में ही मिलता है। जिस में प्रतिदिन टैंकर से पानी भर दिया जाता है। जहां जंगली जानवर आकर अपनी प्यास बुझाते हैं।
पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों की उपलब्धता और उनकी संरक्षण को प्राथमिकता की सूची में रखा गया है। जंगली जानवरों पर सीधी नजर रखने के लिए ट्रेकिंग कैमरे की मदद ली जाती है। थोड़े थोड़े दिनों के अंतराल में ट्रेकिंग कैमरे की मदद से बाघों की गतिविधियां और उनकी मौजूदगी के प्रमाण मिलते रहते हैं।
इसके साथ ही साथ पुराने तरीके जैसे पग विधि और अन्य तरीकों से भी बाघों पर नजर रखी जा सकती है। बेतला राष्ट्रीय उद्यान बाघों और अन्य वन्य प्राणियों के स्वतंत्र विचरण के लिए आरक्षित हैं।
2014 में वन विभाग के द्वारा एक शिशु हथिनी राखी को गोद लिया गया था। इसकी मां का निधन हो वज्रपात से गया था। फिलहाल वन विभाग इसकी देखरेख कर रहा है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
पर्यटकों के लिए वॉच टावर और केचकी गेस्ट हाउस की व्यवस्था है। शाकाहारी वन्यजीवों के लिए लगभग 100 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में वैज्ञानिक तरीके से घास का मैदान बनाया गया है। ताकि सालों भर वन्यजीवों को समुचित आहार मिल सके। यहाँ तक जाने वाली रोड का निर्माण किया गया है ताकि लोगों को यहां आने में सुविधा हो सके।
बेतला में पर्यटकों की सुविधाओं के लिए अब पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। विभिन्न स्थानों पर टूरिस्ट लॉज, वन विश्रामगार, पर्यटक वाहन, टूरिस्ट गाइड, कैंटीन और अल्पाहार जैसी सुविधाओं का संचालन विकास कोर समिति के द्वारा किया जाता है।
यहां नेशनल पार्क के अलावा पलामू किला, केचकी संगम, गरम पानी का झरना, बरवाडी पहाड़ी, मंगल डैम, कुल्लू दोमुहान व्याख्याता केंद्र, नेशनल इनफार्मेशन सेंटर और म्यूजियम जैसी जगह सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
प्रतिवर्ष कोर एरिया प्रमंडल के तहत ग्रामीणों और स्कूली बच्चों को जोड़ते हुए उनकी बीच में वन्य प्राणी सप्ताह, वन महोत्सव, विश्व पर्यावरण दिवस, विश्व वानिकी दिवस और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से यहां जगह-जगह सूचना पट्ट लगाए गए हैं।
लातेहार जिला में स्थित बेतला राष्ट्रीय उद्यान एक खुबसूरत पर्यटक स्थल है। पलामू वन्यजीव अभयारण्य 980 वर्ग किमी के क्षेत्र में बनाया गया था। जिसे बाद में पलामू अभ्यारण्य के 227 वर्ग किमी के एक क्षेत्र के साथ 1989 में इसे बेतला राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था। इस वन्यजीव अभ्यारण्य में विविध पारिस्थितिकी प्रणाली और विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर पाये जाते है। राष्ट्रीय उद्यान एक ऐसा क्षेत्र है जो सख्ती से वन्यजीव और जैव विविधता की बेहतरी के लिए आरक्षित है और जहां विकास, वानिकी, अवैध शिकार, शिकार और खेतों पर चराई जैसी गतिविधियों की अनुमति नहीं है। इसकी सीमाएं अच्छी